Madhu varma

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लेखनी कविता -परंपरा -रामधारी सिंह दिनकर

परंपरा -रामधारी सिंह दिनकर

परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो।
 उसमें बहुत कुछ है,
जो जीवित है,
जीवनदायक है,
जैसे भी हो,
ध्वसं से बचा रखने लायक़ है।

 पानी का छिछला होकर
 समतल में दौड़ना,
यह क्रांति का नाम है। 
 लेकिन घाट बाँधकर
 पानी को गहरा बनाना
 यह परंपरा का नाम है।

 पंरपरा और क्रांति में
 संघर्ष चलने दो। 
 आग लगी है, तो
 सूखी डालो को जलने दो।

 मगर जो डालें
 आज भी हरी है,
उन पर तो तरस खाओ। 
 मेरी एक बात तुम मान लो।

 लोगों की आस्था के आधार
 टूट जाते हैं,
उखड़े हुए पेड़ो के समान
 वे अपनी ज़डो से छूट जाते हैं।

 परंपरा जब लुप्त होती है
 सभ्यता अकेलेपन के
 दर्द में मरती है। 
 कलमें लगना जानते हो,
तो जरुर लगाओ,
मगर ऐसी कि फलों में
 अपनी मिट्टी का स्वाद रहे।

 और ये बात याद रहे
 परंपरा चीनी नहीं मधु है।
 वह न तो हिन्दू है, ना मुस्लिम....

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